ईश्वर से प्रार्थना करते समय भी हम चीज़ों को दूसरों के दृष्टिकोण और व्यापक माहौल के सन्दर्भ में देखते हैं| दरअसल विषम परिस्थतियों के लिए दूसरों को दोषी करार देना हमारी एक पालतू आदत और प्रवृति सी बन गई है| हमारी इस प्रकृति का प्रतिबिंब अब ह्मारे पूजा रूम में भी दिखने लगा है| हमारी प्रार्थना अब कुछ ऐसी हो गई है "हे ईश्वर मेरे चारों ओर फैले वातावरण को शुद्ध करिए, मेरे करीबीयों को आशीर्वाद दें, मेरे पड़ोसिओं को सद्बुद्धि दें" इत्यादि| किंतु अगर ह्म शांति से मनन करें तो ह्म पाएँगे की ह्म कितनी बड़ी भूल कर रहे हैं और प्रार्थना के सही वचन और भाव जो की हर पूजा अर्चना से पूर्व करने चाहिए उनसे हम अपने को वंचित कर रहे हैं| हालाँकि ईश्वर को याद करने के कोई निश्चित वचन नियम नहीं हैं पर भाव क्या होना चाहिए यह तो बताया जा ही सकता है| साधना और स्वाध्याय से पहले ये कामना करें की "हे प्रभु मुझे पवित्र कर दो, मुझे एक बेहतर मनुष्य बना दो, मेरी चेतना का स्तर बड़ा दो, मुझे अंतर आत्मा की पुकार सुनने में सक्षम कर दो, मेरे मन को शांत कर दो और मेरा भाव और चरित्र दोनों ही सदा के लिए शुद्ध कर दो"| क्योंकि जीवन में उपद्रव और गड़बड़ किसी दूसरे के कर्मों से नहीं बल्कि अपने अंतर-द्वंद्व और नकारात्मक सोच की कतार को पनाह देने से आती है| ऐसी सोच ह्मारे भीतर के रचनात्मक पहलू को संकुचित करने के साथ ह्मारा फोकस भी ख़तम कर देती है| तो ज़रूरत अपने को भीतर से टटोलने की है| साधना ह्मको केवल यही नहीं बल्कि फोकस, नर्वस सिस्टम का संतुलन, बेकार के असंख्य विचारों से मुक्ति, पाँचों शरीरों का लिंग रूप में संरेखण, तथा वर्तमान में सोचने का आदि बनाती है| एसी स्थिति में शांति है, धीरज है, सुख है और राहत है| और एसी ही स्थिति में बाबा जी जैसे सिद्ध संतों की अदृश्य शक्तियों का आभास और मार्गदर्शन भी है| नमः शिवाय
Even while making an entreaty to God in
our prayers we have our sights on what others do and how the ambience of our
place is. Actually it has become a pet habit and tendency of ours to pin the
blame of any wrong happening on others. Carrying this bad habit to the prayer
room we say "O God please rectifies my surroundings, please bless my nears
and dears, please bless my neighbours with
maturity......" and so on. But if we take a moment to reflect, we will
find out that we conveniently miss these phrases in prayer which should precede
all meditations, chanting, prayers and any form of piety "O God please
purify me, please make me a better individual, please raise my consciousness
level, please make me hear the inner voice, please quieten my mind, please
improve my character and intention etc."- Because the turbulence and
disarray we see around us is not because others are vitiating the atmosphere
through their wrong deeds or the Vaastu of a place is negative. The turmoil is
because our Inner core is helter-skelter. It is because we are thinking too
much. The steady string of useless thoughts is making it difficult for our
creative side to establish a bright destiny for us. We are losing focus. It is
the inner Self that needs to be steadied, which needs to be made stationary.
How this change in thinking and application of brakes on the restless mind can
be brought about is through meditation. When we meditate we focus on one thing.
We stimulate our Nervous system. We align all our 5 bodies in the form of a
Lingam. We begin to live in the present moment. Our inner self starts to take
over. The unbridled thought process ceases. There is peace. There is solace.
And to our amazement this is the state when there is the experience of the
presence Baba ji and higher powers. Blessings.
नमः शिवाय! बाबा जी अपने शिष्यों को इतना प्रेम करते हैं की साधक कभी-कभी इस लाड़-प्यार में ज़्यादा ही आत्म संतुष्ट हो जाते हैं| शिविरों में अपनी असीम अनुकंपा बरसाना, संजीवनी शक्ति से साधकों को लैस कर देना, अपनी साधना शक्ति की छत्र-छाया में साधकों के सभी कर्म काट देना| यह सभी उदाहरण हैं जिससे पहली पंक्ति में की गयी बात सिद्ध होती है| किंतु सोचने का विषय है की इस लाड़-प्यार में कहीं हम अपनी ज़िम्मेदारियों को भूल तो नहीं जा रहे हैं ? शिविरों के अभाव में कहीं हम साधना,संकीर्तन और सेवा से बिछुड़ तो नहीं रहे ? इन्हीं त्रुटियों का निवारण करने हेतु तथा आत्म साक्ष्ताकार को पाने के लटकते उत्साह को पुनः जागृत करने के लिए बाबा जी का लिखित संदेश लेकर आएँ हैं उनके जैविक और अध्यात्मिक पुत्र ईशान शिवानंद जी| अपने जीवन के क़िस्सों के माध्यम से ईशान जी ने सभी साधकों को ज्योतिषियों, भविष्यवक्ताओं, दुख निवारण करने वाले ढोंगियों तथा समस्याओं का समाधान चन्द मिनटों में देने वाले पाखंडियों से बचने का कारण देते हुए इनसे बचने की भी हिदायत दी है| जीवन में "सरल उपायों" के भ्रम से निकालने का प्रयास भी किया है ईशान जी ने इस संदेश में, जिसका सार है "हम ही स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं"| रही बात सेवा की सीख को याद दिलाने की, तो वो काम ईशान जी ने नीचे दी गयी वीडियो को सौंप दिया| नमः शिवाय|
Namah shivay Baba ji has pampered His
disciples so much that they have almost grown complacent under His umbrella of
protective warmth and under and the tutelage of His sadhna shakti. So, shorn of
shivirs the sadhaks had become self satisfied and their attitude bordered on lethargy
and laziness. This prompted Baba ji to provide the much needed boost to the
sagging enthusiasm of sadhaks. Following from this,
Ishan ji took it upon himself to fulfill this very desire of His spiritual and
biological Father. Thus we have Ishan ji in his latest address to buck up us
all, employing anecdotes from his childhood days, underlining the need to shun
the “mirage of easy solutions” in life by giving a cold shoulder to those
claiming to cure diseases, unfavourable planets, family fights, various kinds
of doshas etc. The mantra for leading a happy life he says is not the refuge of
astrologers, soothsayers or quacks. The need of the hour is to believe in
yourself and embrace the axiom of “You are the Creator of your own destiny”.
The note below will shed more light. Blessings.
नमः शिवाय| बाबा जी कहते हैं: "न जाने कितने जन्मों से तुम एक से बढ़कर एक करोड़ों भयानक कर्म संचित करते आए हो| और उन संचित कर्मों में से न जाने कितने भोगने बाकी हैं| न जाने कौन-कौन से कष्ट और आने बाकी हैं| हे शिवयोगी साधक! प्रतिदिन साधना अवश्य करना| अपने भीतर के कर्मों के पहाड़ों को साधना की अग्नि में भस्म कर देना| इन संचित कर्मों को प्रारब्ध भोग में बदलने से रोकने के लिए अपनी बुरी आदतों को पानी मत देना| ज़्यादा से ज़्यादा पुण्य कर्म करना| और अब नए कर्म संचित करना बंद कर दो| सभी को स्वीकार करो| सभी से प्रेम करो और सभी को क्षमा करो| दूसरों में बुराईयाँ देखना बंद कर दो| दूसरों से इर्षा करना बंद कर दो| अपने जीवन के कष्टों का बखान करना बंद कर दो| सत्संग करो| उस परमेश्वर का नाम लो| निष्काम सेवा करो| गुरू के आश्रम में आओ तो अपने बुरे कर्म, बुरी आदतें और विकार गुरू के चरणों में अर्पित कर देना| और हो सके तो कुछ सेवा वहाँ भी कर ही डालना| क्या मालूम तुम्हारा कौन सा कष्ट, कौन सा बुरा कर्म सेवा में कट जाए| सिद्ध गुरू अपनी तप की अग्नि से तुम्हारे बुरे कर्मों का भक्षण करेगा| तुम बस शरणागती बनो| गुरू के दिखाए हुए मार्ग पर चलो| बाकी कृपा करना उसका स्वभाव है| और वो अपना दायित्व निभाएगा ही| तुम बस अपनी भावना शुद्ध रखना और सभी को देख के आशीर्वाद देना, खुश होना| ऐसा करने से, पहले के संचित कर्म भी कटेंगे और कोई नया कर्म भी पैदा नहीं होगा| इसलिए हर हाल में खुशी| हर समय शिवोहम की स्थिति| वर्तमान में रहने का अभ्यास|" नमः शिवाय!
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